मधुराष्टकम् - अर्थ सहित। अधरं मधुरं वदनं

 



मधुराष्टकं में श्रीकृष्ण के बाल रूप की मधुरता का वर्णन अत्यंत सुन्दरता से किया गया है। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण के प्रत्येक अंग, उनकी क्रियाएँ और गतिविधियाँ, सब कुछ माधुर्य से पूर्ण है। उनके संपर्क से अन्य जीवित और निर्जीव वस्तुएं भी इस दिव्य मधुरता को अनुभव करती हैं। इस अमूल्य रचना के लिए प्रभु के प्रिय भक्त महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी को शत-शत कोटि नमन!

यह गीत भगवान श्री कृष्ण के मधुरता और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करता है। यहाँ इस गीत का अर्थ हिंदी में प्रस्तुत किया गया है:


अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
 

हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

उनके होंठ मधुर हैं, उनका चेहरा मधुर है, उनकी आंखें मधुर हैं, उनका हंसना मधुर है।
उनका हृदय मधुर है, उनकी चाल मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं। 

चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

उनके वचन मधुर हैं, उनका चरित्र मधुर है, उनके वस्त्र मधुर हैं, उनका पहनावा मधुर है।
उनकी हर एक गतिविधि मधुर है, उनकी भ्रमण भी मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ। 

नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

उनकी बांसुरी मधुर है, उनकी धूलि मधुर है, उनके हाथ मधुर हैं, उनके पांव मधुर हैं।
उनका नृत्य मधुर है, उनकी मित्रता मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं। 

रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

उनका गान मधुर है, उनका पीना मधुर है, उनका भोजन मधुर है, उनका सोना मधुर है।
उनका रूप मधुर है, उनका तिलक मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं। 

वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

उनका कर (हाथ) मधुर है, उनका लहराना (तरण) मधुर है, उनका हरण (लुटना) मधुर है, उनका रमण (आनंद) मधुर है।
उनका वमित (उपचार) मधुर है, उनका शमित (शांति) मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा। 

सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गुञ्जा (पुंडली) मधुर है, माला मधुर है, यमुना (नदी) मधुर है, तरंगें (वीची) मधुर हैं।
जल (सलिल) मधुर है, कमल (फूल) मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं। 

दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीला मधुर है, उनका योग (संगति) मधुर है, उनका मोक्ष (मुक्ति) मधुर है।
उनका दृष्ट (दर्शन) मधुर है, उनका सृष्ट (सृष्टि) मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा। 

दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

गोप (पालक) मधुर हैं, गायें (गावो) मधुर हैं, यष्टि (पारदर्शिता) मधुर है, सृष्टि (सिर्जन) मधुर है।
दलित (विभाजन) मधुर है, फलित (फल) मधुर है, और मधुरता के स्वामी, हर जगह उनकी मधुरता है।

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